प्रश्न 1 ठोस कठोर क्यों होते हैं?
उत्तर- ठोस कठोर होते हैं, क्योंकि इनके अवयवी कण अत्यन्त निविड संकुलित होते हैं। इनमें कोई स्थानान्तरीय गति नहीं होती है तथा ये केवल अपनी माध्य स्थिति के चारों ओर कम्पन कर सकते हैं
प्रश्न 2 ठोस का आयतन निश्चित क्यों होता है?
उत्तर- ठोसों में मौजूद अंतर आण्विक आकर्षण बल बहुत मजबूत होती हैं। ठोस पदार्थों के घटक कणों में निश्चित स्थान होते हैं अर्थात वे कठोर होते हैं। इसलिए, ठोस पदार्थों की एक निश्चित आयतन होती है।
प्रश्न 3 निम्नलिखित को अक्रिस्टलीय तथा क्रिस्टलीय ठोसों में वर्गीकृत कीजिए।
पॉलियूरिथेन, नैफ्थेलीन, बेन्जोइक अम्ल, टेफ्लॉन, पोटैशियम नाइट्रेट, सेलोफेन, पॉलिवाइर्निल क्लोराइड, रेशा काँच, ताँबा।
उत्तर-
·
अक्रिस्टलीय ठोस- पॉलियूरिथेन, फ्लॉन, सेलोफेन, पॉलिवाइनिल, क्लोराइड, रेशा काँच।
·
क्रिस्टलीय ठोस- नैफ्थेलीन, बेन्जोइक अम्ल, पोटैशियम नाइट्रेट, ताँबा।
प्रश्न 4. एक ठोस के अपवर्तनांक का मान सभी दिशाओं में समान प्रेक्षित होता है। इस ठोस की प्रकृति पर टिप्पणी कीजिए। क्या यह विदलन गुण प्रदर्शित करेगा?
उत्तर- अलग-अलग दिशाओं से मापा जाने पर एक आइसोट्रोपिक ठोस में भौतिक गुणों का समानता होती है।इसलिए, दिए गए ठोस में सभी दिशाओं में समान होने के कारण, प्रकृति में आइसोट्रोपिक है। इसलिए, ठोस एक NONCRYSTALLINE ठोस है।
जब एक अनाकार ठोस को तेज धार वाले उपकरण से काटा जाता है, तो यह अनियमित सतहों के साथ दो टुकड़ों में कट जाता है।
प्रश्न 5. उपस्थित अन्तराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित ठोसों को विभिन्न संवर्गों में वर्गीकृत कीजिए-
पोटैशियम सल्फेट, टिन, बेंजीन, यूरिया, अमोनिया, जल, जिंक सल्फाइड, ग्रेफाइट, रूबिडियम, आर्गन, सिलिकन कार्बाइड।
उत्तर-
|
पोटैशियम सल्फेट |
= |
आयनिक |
|
टिन |
= |
धात्विक |
|
बेंजीन |
= |
आण्विक (अध्रुवीय) |
|
यूरिया |
= |
आण्विक (ध्रुवीय) |
|
अमोनिया |
= |
आण्विक (हाइड्रोजन आबन्धित) |
|
जल |
= |
आण्विक (हाइड्रोजन आबन्धित) |
|
जिंक सल्फाइड |
= |
आयनिक |
|
ग्रेफाइट |
= |
सहसंयोजी |
|
रूबिडियम |
= |
धात्विक |
|
आर्गन |
= |
आण्विक (अध्रुवीय) |
|
सिलिकन कार्बाइड |
= |
सहसंयोजी या नेटवर्क |
प्रश्न 6 . ठोस A, अत्यधिक कठोर तथा ठोस एवं गलित अवस्थाओं में विद्युतरोधी है और अत्यन्त उच्च दाब पर पिघलता है। यह किस प्रकार का ठोस है?
उत्तर- सहसंयोजी अथवा नेटवर्क ठोस, जैसे- SiC
प्रश्न 7 . आयनिक ठोस गलित अवस्था में विद्युत चालक होते है परन्तु ठोस अवस्था में नहीं, व्याख्या कीजिये।
उत्तर- आयनिक ठोसों के अवयवी कण आयन होते हैं। ऐसे ठोसों का निर्माण धनायनों और ऋणायनों के त्रिविमीय विन्यासों में प्रबल कूलॉमी (स्थिर वैद्युत) बलों से बँधने पर होता है। चूँकि इसमें आयन गमन के लिए स्वतंत्र नहीं होते, अतः ये ठोस अवस्था में विद्युतरोधी होते हैं। तथापि गलित अवस्था में अथवा जल में घोलने पर, आयन गमन के लिए मुक्त हो जाते हैं और वे विद्युत का संचालन करते हैं।
प्रश्न 8 . किस प्रकार के ठोस विद्युत चालक, आघातवर्थ्य और तन्य होते हैं?
उत्तर- धात्विक ठोस।
प्रश्न 9 . ‘जालक बिंदु से आप क्या समझते है?
उत्तर - क्रिस्टल में उपस्थित उसके अवयवी कणों (अणु परमाणु या आयनों ) को बिंदु द्वारा दर्शाया जाता है जिन्हें जलक बिंदु कहते हैं
प्रश्न 10 . एकक कोष्ठिका को अभिलक्षणित करने वाले पैरामीटरों के नाम बताइए।
उत्तर-· एकक कोष्ठिका की कोर की विमाएँ (a, b, c) – परस्पर लम्बवत् हो सकती हैं अथवा नहीं।
·
कोरों के मध्य के कोण (a, B तथा γ)
प्रश्न 11 . निम्नलिखित में विभेद कीजिए-
·
षट्कोणीय और एकनताक्ष एकक कोष्ठिका।
·
फलक केन्द्रित तथा अंत्य-केन्द्रित एकक कोष्ठिका।
उत्तर-
· षट्कोणीय एकक कोष्ठिका में,
· एकनताक्ष एकक कोष्ठिका मे
प्रश्न 1. एक अणु की वर्ग निविड संकुलित परत में द्विविमीय उप-सहसंयोजन संख्या क्या होगी?
उत्तर- द्विविमीय निविड संकुलित परत में परमाणु 4 सन्निकट परमाणुओं को स्पर्श करता है अत: इसकी उप-सहसंयोजन संख्या 4 होगी।
प्रश्न 2. एक यौगिक षट्कोणीय निविड़ संकुलित संरचना बनाता है। इसके 0.5 मोल में रिक्तियों की संख्या कितनी होगी? उनमें से कितनी रिक्तियाँ चतुष्फलकीय हैं?
उत्तर- यौगिक के 0.5 मोल में परमाणुओं की संख्या = 0.5 × 6.022 × 1023
= 3.011 × 1023
अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या = संकुलन में परमाणुओं की संख्या
= 3.011 × 1023
चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या = 2 × संकुलन में परमाणुओं की संख्या
= 2 × 3.011 × 1023 = 6.022 × 1023
∴ रिक्तियों की कुल संख्या = (3.011 + 6.022) × 1023
= 9.033 × 1023
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से किस जालक में उच्चतम संकुलन क्षमता है?
a)
सरल घनीय,
b)
अन्तः केन्द्रित घन और
c)
षट्कोणीय निविड संकुलित जालक।
उत्तर- संकुलन क्षमताएँ निम्न हैं-
a)
सरल घनीय = 52.4%,
b)
अन्तः केन्द्रित घनीय = 68%,
c)
षट्कोणीय निविड संकुलित = 74%
अतः षट्कोणीय निविड संकुलित व्यवस्था में अधिकतम संकुलन क्षमता होती है।
प्रश्न 5. एक तत्त्व का मोलर द्रव्यमान 2.7 × 10-2 kg mol-1 है। यह 405 pm लम्बाई की भुजा वाली घनीय एकक कोष्ठिका बनाता है। यदि उसका घनत्व 2.7 × 103
kg m-3 हो तो घनीय एकक कोष्ठिका की प्रकृति क्या होगी?
प्रश्न 1. जब एक ठोस को गर्म किया जाता है तो किस प्रकार का दोष उत्पन्न हो सकता है? इससे कौन-से भौतिक गुण प्रभावित होते हैं और किस प्रकार?
उत्तर- रिक्तिका दोष; गर्म करने पर ठोस के कुछ परमाणु अथवा आयन जालक स्थल को पूर्णतः छोड़ देते। हैं। परमाणुओं अथवा आयनों के क्रिस्टल को पूर्णतः छोड़ने के कारण पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित किस प्रकार का स्टॉइकियोमीट्री दोष दर्शाते हैं?
·
ZnS
·
AgBr
उत्तर-
·
फ्रेंकेल दोष
·
फ्रेंकेल तथा शॉटकी दोष दोनों।
प्रश्न 3. समझाइए कि एक उच्च संयोजी धनायन को अशुद्धि की तरह मिलाने पर आयनिक ठोस में रिक्तिकाएँ किस प्रकार प्रविष्ट होती हैं?
उत्तर- विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए उच्च संयोजकता वाले धनायन द्वारा निम्न संयोजकता वाले दो या अधिक धनायन प्रतिस्थापित होते हैं। अत: कुछ धनायन रिक्तियाँ जनित होती हैं, जैसे- यदि आयनिक ठोस Na+ cl- में Sr2+
की अशुद्धि मिलाई जाती है तब दो Na+ जालक बिन्दु रिक्त हो जाते हैं तथा इनमें से एक Sr2+ आयन द्वारा घिर जाती है तथा अन्य रिक्त रहती हैं।
प्रश्न 4. जिन आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दोष के कारण ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर- इसको सोडियम क्लोराइड (Na+
cl-) का उदाहरण लेकर समझा सकते हैं। जब इसके क्रिस्टलों को सोडियम वाष्प की उपस्थिति में गर्म करते हैं तब कुछ Cl- आयन अपने जालक स्थलों को छोड़कर सोडियम से संयुक्त होकर NaCl बना लेते हैं। इस अभिक्रिया के होने के लिए सोडियम परमाणु इलेक्ट्रॉन खोकर Na+
आयन बनाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल में विसरित होकर Cl- आयनों द्वारा जनित ऋणायनिक रिक्तिकाओं को घेर लेते हैं। क्रिस्टल में अब सोडियम का आधिक्य होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा घेरे गए स्थल F-
केन्द्र कहलाते हैं। ये क्रिस्टल को पीला रंग प्रदान करते हैं, क्योंकि वे दृश्य प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके उत्तेजित हो जाते हैं।
प्रश्न 5. वर्ग 14 के तत्त्व को n- प्रकार के अर्द्धचालक में उपयुक्त अशुद्धि द्वारा अपमिश्रित करके रूपान्तरित करना है। यह अशुद्धि किस वर्ग से सम्बन्धित होनी चाहिए?
उत्तर- n- प्रकार के अर्द्धचालक प्राप्त करने के लिए समूह 15 से अशुद्धता को जोड़ा जाना चाहिए।
प्रश्न 6. किस प्रकार के पदार्थों से अच्छे स्थायी चुम्बक बनाए जा सकते हैं- लौहचुम्बकीय अथवा फेरीचुम्बकीय? अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
उत्तर- लौहचुम्बकीय पदार्थ श्रेष्ठ स्थायी चुम्बक बनाते हैं क्योंकि इनमें धातु आयन छोटे क्षेत्रों में व्यवस्थित होते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। प्रत्येक डोमेन सूक्ष्म चुम्बक के रूप में कार्य करता है। ये डोमेन अनियमित रूप में व्यवस्थित होते हैं। जब इन पर चुम्बकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है तब वे चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं तथा प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र बनाते हैं। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के हटा लेने पर भी डोमेन व्यवस्थित रहते हैं। इस प्रकार लौहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 8. निम्नलिखित जालकों में से एकक कोष्ठिका में कितने जालक बिन्दु होते हैं?
a)
फलक - केन्द्रित घनीय
b)
फलक केंद्रित चतुष्कोणीय।
c)
अन्तः केन्द्रित।
उत्तर-
a)
फलक - केन्द्रित घनीय संरचना (fcc) में जालक बिन्दु
= 8 (कोनों पर) + 6 (फलक केन्द्र पर) = 14
b)
फलक - केन्द्रित चतुष्कोणीय संरचना में जालक बिन्दु
= 8 (कोनों पर) + 6 (फलक केन्द्र पर) = 14
c)
अन्त: केन्द्रित घनीय (bcc) संरचना में जालक बिन्दु
= 8 (कोनों पर) + 1 (अन्त:केन्द्र पर) = 9
प्रश्न 9. समझाइए-
a)
धात्विक एवं आयनिक क्रिस्टलों में समानता एवं विभेद का आधार।
b)
आयनिक ठोस कठोर एवं भंगुर होते हैं।
उत्तर-
a)
समानताएँ:
आयनिक तथा धात्विक दोनों क्रिस्टलों में स्थिर विद्युत आकर्षण बल विद्यमान होता है। आयनिक क्रिस्टलों में यह विपरीत आवेशयुक्त आयनों के मध्य होता है। धातुओं में यह संयोजी इलेक्ट्रॉनों तथा करनैल (kernels) के मध्य होता है। इसी कारण से इन दोनों के गलनांक उच्च होते हैं।
दोनों स्थितियों में बन्ध अदैशिक होता है।
अंतर:
आयनिक क्रिस्टल ठोस अवस्था में बिजली के बुरे संवाहक होते हैं क्योंकि आयन स्थानांतरित होने के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं। वे केवल मरने वाले पिघले हुए राज्य या जलीय घोल में बिजली का संचालन कर सकते हैं। धात्विक अवस्था में धात्विक क्रिस्टल विद्युत के अच्छे संवाहक होते हैं क्योंकि इलेक्ट्रॉनों को स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र होता है
आयनिक बन्ध स्थिर विद्युत आकर्षण के कारण प्रबल होते हैं। धात्विक बन्ध दुर्बल भी हो सकता है। या प्रबल भी, यह संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या तथा करनैल के आकार पर निर्भर करता है।
b) आयनिक क्रिस्टल कठोर होते हैं क्योंकि इनमें विपरीत आवेशयुक्त आयनों के मध्य प्रबल स्थिर विद्युत आकर्षण बल उपस्थित होता है। ये भंगुर होते हैं क्योंकि आयनिक बन्ध अदिशात्मक होता ह
इस प्रकार की संरचना में परमाणुओं की कुल संख्या चार होती है तथा उनका आयतन है।
प्रश्न 11. चाँदी का क्रिस्टलीकरण fcc जालक में होता है। यदि इसकी कोष्ठिका के कोरों की लम्बाई 4.07 × 10-8 cm तथा घनत्व 10.5g cm-3 हो तो चाँदी का परमाण्विक द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
प्रश्न 13. नायोबियम का क्रिस्टलीकरण अन्तः केन्द्रित घनीय संरचना में होता है। यदि इसका घनत्व 8.55g cm-3 हो तो इसके परमाण्विक द्रव्यमान 93u का प्रयोग करके परमाणु त्रिज्या की गणना कीजिए।
उत्तर- अन्त: केन्द्रित घनीय संरचना (bcc) में Z = 2, घनत्व ρ = 8.55 g cm-3,
परमाण्विक द्रव्यमान, M = 92.9g
mol-1
bcc एकक कोष्ठिका के लिए,
विकर्ण = 4 × नायोबियम परमाणु की त्रिज्या
प्रश्न 16. विश्लेषण द्वारा ज्ञात हुआ कि निकिल ऑक्साइड का सूत्र Ni0.98 O1.00 है। निकिल आयनों का कितना अंश Ni2+
और Ni3+ के रूप में विद्यमान है?
उत्तर- Ni0.98
O1.00 नॉन- स्टॉइकियोमीटी यौगिक है। Ni आयन तथा ऑक्साइड आयनों का संघटन 98 : 100 है। माना Ni में x Ni2+ आयन तथा (98 - x) Ni3+
आयन हैं।
Ni2+ तथा Ni3+
पर उपस्थित धनावेश ऑक्साइड आयनों पर उपस्थित ऋणावेश के बराबर होगा, अतः
x × 2 + (98 - x )3 = 100 × 2
2 + 294 – 3x = 100 × 2
∴ x = 94
अत: 98 Ni आयनों में 94 Ni2+ आयन तथा 4 Ni3+
आयन होंगे।
∴ Ni2+ आयनों का प्रतिशत 96%
Ni3+ आयनों का प्रतिशत = 4%
प्रश्न 17. अर्द्धचालक क्या होते हैं? दो मुख्य अर्द्धचालकों का वर्णन कीजिए एवं उनकी चालकता क्रियाविधि में विभेद कीजिए।
उत्तर- अर्द्धचालक- वे ठोस जिनकी चालकता 10-6 से 104ohm-1 m-1 तक के मध्यवर्ती परास में होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं।
अर्द्धचालकों में संयोजक बैण्ड एवं चालक बैण्ड के मध्य ऊर्जा- अन्तराल कम होता है। अतः कुछ इलेक्ट्रॉन चालक बैण्ड में लाँघ सकते हैं और अल्प- चालकता प्रदर्शित कर सकते हैं। ताप बढ़ने के साथ अर्द्धचालकों में विद्युत- चालकता बढ़ती है, क्योंकि अधिक संख्या में इलेक्ट्रॉन चालक बैण्ड में देखे जा सकते हैं। सिलिकन एवं जर्मेनियम जैसे पदार्थ इस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। इनमें उचित अशुद्धि को उपयुक्त मात्रा में मिलाने से इनकी चालकता बढ़ जाती है। इस आधार पर दो प्रकार के अर्द्धचालक तथा उनकी चालकता- क्रियाविधि का वर्णन निम्नवत् है-
n
- प्रकार अर्धचालक (n-type
semiconductors)- सिलिकन तथा जर्मेनियम आवर्त सारणी के वर्ग 14 से सम्बन्धित हैं और प्रत्येक में चार संयोजक इलेक्ट्रॉन हैं। क्रिस्टलों में इनका प्रत्येक परमाणु अपने निकटस्थ परमाणुओं के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाता है जब वर्ग 15 के तत्व; जैसे- P अथवा As, जिनमें पाँच संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं, को अपमिश्रित किया जाता है तो ये सिलिकन अथवा जर्मेनियम के क्रिस्टल में कुछ जालक स्थलों में आ जाते हैं P अथवा As के पाँच में से चार इलेक्ट्रॉनों का उपयोग चार सन्निकट सिलिकन परमाणुओं के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाने में होता है। पाँचवाँ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन विस्थानित (delocalised)
हो जाता है। यह विस्थानित इलेक्ट्रॉन अपमिश्रित सिलिकन (अथवा जर्मेनियम) की चालकता में वृद्धि करता है। यहाँ चालकता में वृद्धि ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन के कारण होती है, अत: इलेक्ट्रॉन-धनी अशुद्धि से अपमिश्रित सिलिकन को n-प्रकार का अर्द्धचालक कहा जाता है।
p-
प्रकार के अर्द्धचालक (p-type
semiconductors)- सिलिकन अथवा जर्मेनियम को वर्ग 13 के तत्वों; जैसे- B, Al अथवा Ga के साथ भी अपमिश्रित किया जा सकता है जिनमें केवल तीन संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं। वह स्थान जहाँ चौथा इलेक्ट्रॉन नहीं होता, इलेक्ट्रॉन रिक्ति या इलेक्ट्रॉन छिद्र कहलाता है निकटवर्ती परमाणु से इलेक्ट्रॉन आकर इलेक्ट्रॉन छिद्र को भर सकता है, परन्तु ऐसा करने पर वह अपने मूल स्थान पर इलेक्ट्रॉन छिद्र छोड़ जाता है। यदि ऐसा हो तो यह प्रतीत होगा जैसे कि इलेक्ट्रॉन छिद्र जिस इलेक्ट्रॉन द्वारा यह भरा गया है, उसके विपरीत दिशा में चल रहा है। विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन छिद्रों में से धनावेशित प्लेट की ओर चलेंगे, परन्तु ऐसा प्रतीत होगा; जैसे इलेक्ट्रॉन छिद्र धनावेशित हैं और ऋणावेशित प्लेट की ओर चल रहे हैं। इस प्रकार के अर्द्धचालकों को p- प्रकार के अर्द्धचालक कहते हैं।
प्रश्न 18. नॉनस्टॉइकियोमीट्री क्यूप्रस ऑक्साइड, Cu2O
प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है। इसमें कॉपर तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2 : 1 से कुछ कम है। क्या आप इस तथ्य की व्याख्या कर सकते हैं कि यह पदार्थ p- प्रकार का अर्द्धचालक है?
उत्तर- Cu2O
में Cu तथा O का 2 : 1 से कम अनुपात यह प्रदर्शित करता है कि इसमें धनायनिक रिक्ति के कारण धातु न्यूनता है। धातु न्यून यौगिक धनायन छिद्रों के द्वारा विद्युत चालन करते हैं। अतः p- प्रकार के अर्द्धचालक होते हैं।
प्रश्न 20. निम्नलिखित को p-प्रकार या n-प्रकार के अर्द्धचालकों में वर्गीकृत कीजिए-
·
In से डोपित Ge
·
B से डोपित Si
उत्तर-
·
p- प्रकार अर्द्धचालक
·
n- प्रकार अर्द्धचालक
प्रश्न 22. बैण्ड सिद्धान्त के आधार पर-
·
चालक एवं रोधी।
·
चालक एवं अर्द्धचालक में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-
·
चालक एवं रोधी में अन्तर: अचालक अथवा रोधी में संयोजक बैण्ड तथा चालक बैण्ड के मध्य ऊर्जा-अन्तर बहुत अधिक होता है, जबकि चालक में ऊर्जा - अन्तर अत्यन्त कम होता है या संयोजक बैण्ड तथा चालक बैण्ड के बीच अतिव्यापन होता है।
·
चालक एवं अर्द्धचालक में अन्तर- चालक में संयोजक बैण्ड तथा चालक बैण्ड के बीच ऊर्जा-अन्तर अत्यन्त कम होता है। अथवा अतिव्यापन होता है, जबकि अर्द्धचालकों में ऊर्जा अन्तर सदैव कम ही होता है, कभी भी अतिव्यापन नहीं होता।
प्रश्न 23. उचित उदाहरण द्वारा निम्नलिखित पद को परिभाषित कीजिए-
·
शॉट्की दोष।
·
फ्रेंकेल दोष।
·
अंतराकशी।
·
F- केंद्र।
उत्तर-
·
शॉट्की दोष- यह आधारभूत रूप से आयनिक ठोसों का रिक्तिका दोष है। जब एक परमाणु अथवा आयन अपनी सामान्य (वास्तविक) स्थिति से लुप्त हो जाता है तो एक जालक रिक्तता निर्मित हो जाती है; इसे शॉकी दोष कहते हैं। विद्युत उदासीनता को बनाए रखने के लिए लुप्त होने वाले धनायनों और ऋणायनों की संख्या बराबर होती है। शॉट्की दोष उन आयनिक पदार्थों द्वारा दिखाया जाता है जिनमें धनायन और ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं।
उदाहरण के लिए- NaCl, KCl,
CsCl और AgBr शॉट्की दोष दिखाते हैं।
·
फ्रेंकेल दोष- यह दोष आयनिक ठोसों द्वारा दिखाया जाता है। लघुतर आयन (साधारणतया धनायन) अपने वास्तविक स्थान से विस्थापित होकर अन्तराकाश में चला जाता है। यह वास्तविक स्थान पर रिक्तिका दोष और नए स्थान पर अन्तराकाशी दोष उत्पन्न करता है। फ्रेंकेल दोष को विस्थापन दोष भी कहते हैं। यह ठोस के घनत्व को परिवर्तित नहीं करता। फ्रेंकेल दोष उन आयनिक पदार्थ द्वारा दिखाया जाता है जिनमें आयनों के आकार में अधिक अन्तर होता है।
उदाहरण के लिए- ZnS, AgCl,
AgBr और AgI में यह दोष Zn2+ और Ag+ आयन के लघु आकार के कारण होता है।
उदाहरण के लिए- NaCl, KCl, CsCl
और AgBr शॉट्की दोष दिखाते हैं।
·
अन्तराकाशी दोष (Interstitial defect)- जब कुछ अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तराकोशी स्थल पर पाए जाते हैं तब उत्पन्न दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को बढ़ाता है। अन्तराकाशी दोष अनआयनिक ठोसों में पाया जाता है। आयनिक ठोसों में सदैव विद्युत उदासीनता बनी रहनी चाहिए। इससे इनमें यह दोष दिखाई नहीं देता है।
·
F- केन्द्र- जब क्षारकीय हैलाइड; जैसे- NaCl को क्षार धातु (जैसे- सोडियम) की वाष्प के वातावरण में गर्म किया जाता है तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। Cl- आयन क्रिस्टल की सतह में विसरित हो जाते हैं और Na+ आयनों के साथ जुड़कर NaCl देते हैं। Na+ आयन बनाने के लिए Na परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन निकल जाता है। निर्मुक्त इलेक्ट्रॉन विसरित होकर क्रिस्टल के ऋणायनिक स्थान को अध्यासित करते हैं, परिणामस्वरूप अब क्रिस्टल में सोडियम का आधिक्य होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी जाने वाली इन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F-केन्द् कहते हैं। ये NaCl क्रिस्टलों को पीला रंग प्रदान करते हैं। यह रंग इन इलेक्ट्रॉनों द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के परिणामस्वरूप दिखता है।
प्रश्न 24. ऐलुमिनियम घनीय निविड संकुलित संरचना में क्रिस्टलीकृत होता है। इसका धात्विक अर्द्धव्यास 125pm है।
एकक कोष्ठिका के कोर की लम्बाई ज्ञात कीजिए।
1.0cm3
ऐलुमिनियम में कितनी एकक कोष्ठिकाएँ होंगी?
प्रश्न 25. यदि NaCl को SrCl2 के 10-3 मोल % से डोपित किया जाए तो धनायनों की रिक्तियों का सान्द्रण क्या होगा?
उत्तर-
प्रश्न 26. निम्नलिखित को उचित उदाहरण से समझाइए-
1.
लौहचुम्बकत्व।
2.
अनुचुम्बकत्व।
3.
फेरीचुम्बकत्व।
4.
प्रतिलौहचुम्बकत्व।
5.
12 - 16 और 13 - 15 वर्गों के यौगिक।
उत्तर-
1.
लौहचुम्बकत्व- कुछ पदार्थ; जैसे-लोहा, कोबाल्ट, निकिल, गैडोलिनियम और CrO2 बहुत प्रबलता से चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे पदार्थों को लौहचुम्बकीय पदार्थ कहा जाता है। प्रबल आकर्षणों के अतिरिक्त ये स्थायी रूप से चुम्बकित किए जा सकते हैं। ठोस अवस्था में लौहचुम्बकीय पदार्थों के धातु आयन छोटे खण्डों में एकसाथ समूहित हो जाते हैं, इन्हें डोमेन कहा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक डोमेन एक छोटे चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है। लौहचुम्बकीय पदार्थ के अचुम्बकीय टुकड़े में डोमेन अनियमित रूप से अभिविन्यसित होते हैं और उनकी चुम्बकीय आघूर्ण निरस्त हो जाता है। पदार्थ को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर सभी डोमेन चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में अभिविन्यसित हो जाते हैं और प्रबल चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होती है। चुम्बकीय क्षेत्र को हटा लेने पर भी डोमेनों का क्रम बना रहता है और लौहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक बन जाते हैं। चुम्बकीय पदार्थों की यह प्रवृत्ति लौहचुम्बकत्व कहलाती है।
2.
अनुचुम्बकत्व- वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। इन पदार्थों की यह प्रवृत्ति अनुचुम्बकत्व कहलाती है। अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र की ओर दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं। ये चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में ही चुम्बकित हो जाते हैं तथा चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में अपना चुम्बकत्व खो देते हैं। अनुचुम्बकत्व का कारण एक अथवा अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति है, जो कि चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। O2, Cu2+, Fe3+,
Cr3+ ऐसे पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं।
3.
फेरीचुम्बकत्व- जब पदार्थ में डोमेनों के चुम्बकीय आघूर्णो का संरेखण समान्तर एवं प्रतिसमान्तर दिशाओं में असमान होता है, तब पदार्थ में फेरीचुम्बकत्व देखा जाता है। ये लोहचुम्बकत्व की तुलना में चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं। Fe3O4 (मैग्नेटाइट) और फेराइट जैसे MgFe2O4, ZnFe2O4,
ऐसे पदार्थों के उदाहरण हैं। ये पदार्थ गर्म करने पर फेरीचुम्बकत्व खो देते हैं और अनुचुम्बकीय बन जाते हैं।
4.
प्रतिलौहचुम्बकत्व- प्रतिलौहचुम्बकत्व प्रदर्शित करने वाले पदार्थ जैसे MnO में डोमेन संरचना लोहचुम्बकीय पदार्थ के समान होती है, परन्तु उनके डोमेन एक-दूसरे के विपरीत अभिविन्यसित होते हैं तथा एक-दूसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को निरस्त कर देते हैं। जब चुम्बकीय आघूर्ण इस प्रकार अभिविन्यासित होते हैं कि नेट चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है, तब चुम्बकत्व प्रतिलौहचुम्बकत्व कहलाता है।
5.
12 - 16 और 13 - 15 वर्गों के यौगिक (Compounds of group 12 - 16
and 13 - 15) - वर्ग 12 के तत्वों और वर्ग 16 के तत्वों से बने यौगिक 12 - 16 वर्गों के यौगिक कहलाते हैं; जैसे- ZnS, HgTe आदि। वर्ग 13 के तत्वों और वर्ग 15 के तत्वों से बने यौगिक 13 - 15 वर्गों के यौगिक कहलाते हैं; जैसे- GaAs, AlP आदि।
This is great sir 👍
ReplyDeleteThank you
DeleteDanish equa
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